गाेयल की राष्ट्रवादी गतिविधियाें से अत्यधिक क्षुब्ध थे महाराजा

गाेयल ने अपने इस वक्तव्य में न्यायाधीश महाेदय काे चेताते हुए यह भी कहा कि माैजूदा मेरे इस मुकद्दमें में राज्य अाैर नागरिक के बीच इंसाफ की बात है। अाप पर न्याय का दायित्व है अाैर महाराजा की भी स्वतंत्र न्यायालयाें की घाेषणा है ही। अपने लंबे-चाैड़े लिखित बयान का समापन करते हुए गाेयल ने लिखा, प्रारंभ में इस न्याय-नाटक में भाग लेने का मेरा विचार नहीं था क्याेंकि माेहल्लत न मिलने व पैरवी की अाजादी ने देने की रूकावट है। यहां तक कि इस लिखित बयान काे अंकित करने के लिए हाेल्डर-दवात की सुविधा न दिए जाने से मजबूर हाेकर यह वक्तव्य पैंसिल से लिख कर पेश करने पर विवश हूं। फिर भी मैंने साेचा कि पैरवी न हाेने से इस मुकद्दमे का एक अंग खाली रह जाएगा, अाैर नाटक पूर्ण नहीं लगेगा इसलिए मैंने विचार बदला है। इस नाटक में क्या हाेने वाला है, यह मुझे मालूम है, अाप ताे निमित्त मात्र है। अदालत ने फैसला सुनाने की तारीख 13 अक्टूबर 1942 तय की। बीकानेर राज्य की हुकूमत अाैर विशेषत: बीकानेर महाराजा की दृष्टि में राज्य की निर्वासन अाज्ञा भंग कर राज्य में प्रवेश करने का गाेयल का यह कृत्य एक दंडनीय अपराध ताे था ही, वह गाेयल से उनकी अांग्ल विराेधी राष्ट्रवादी गतिविधियाें काे लेकर भी अत्यधिक क्षुब्ध थे। वह गाेयल से अत्यधिक क्रुद्ध इसलिए भी थे कि उन्हाेंने अंग्रेजाे भारत छाेड़ाे अाैर कराे या मराे का राष्ट्रव्यापी संदेश देने वाले कांग्रेस के बम्बई अधिवेशन में भाग लिया था, जिसे ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ खुल्लमखुल्ला विद्राेह माना गया था। (लगातार)

बीकानेर इतिहास दर्शन

डाॅ.शिव कुमार भनाेत